कोई हसरत आज उम्मीद से है !!

कोई  हसरत  आज  उम्मीद  से  है ,
जाने क्या  गुल  खिलाएगी !
एक  उम्र  मैं  भटकता  रहा
कभी   मंजिल  नज़र  आएगी !!

बेसबब  हसने  का  शौक  जाने  कहाँ  लेके  आया  है
चेहरे  पे  चेहरा , चेहरे  पे  नकाब  लगाया  है !
कभी  सूरत  आइना  देखती   है
कभी  आइना  सूरत  पे  ठहर  जाता  है !
मैं  कभी  घुलता  हूँ , और  कभी  बिखर  जाता  हूँ
हर  दिन  मैं  कहीं  कल  से , छोटा  नज़र  आता  हूँ

आज  फेहरिस्त  मैं  नाकामी  के  सिवा  कुछ  भी  नहीं
हर  जदोजहद  हिस्सा  है , मुझसे  जुदा  कुछ  भी  नहीं
हर  रोज़  नयी  ज़ंग  है , और  नए  दुश्मन  हैं
जीत  भी  जाता  हूँ , मगर  रात  भर  थकन  है
इस  जुस्तजू  मैं  मेरे  शोक  कहाँ  खो  गए
फूल  खिलते  भी  थे , अब  बियांबा  हो  गए

अब  तो  एक  बार  नए  कागज़  पे  ग़ज़ल  लिखना  है
अब  तो  एक  बार  नए  मौसम  की  फ़सल  लिखना  है
अब  तो  नया  नाम   पता,  और  नई  शकल  लिखना  है
'राजा ' तेरे  नाम,  सुबह  ओ  शाम,  आज  और  कल  लिखना  है

मुद्दतों  बाद  आज  फिर ,
कोई  हसरत  उम्मीद  से है!!

देर से सही मगर होगा !

देर से सही मगर होगा !
पत्थर पे भी असर होगा !!

ख़ैर वोह बुत ही सही !
आशना फिर किधर होगा !!
**आशना =close  friend

इक उम्र इंतज़ार के बाद !
उनसे मिलना मुक्तसर होगा !!
**मुक्तसर = very short duration

साकी बगैर मयखाने मैं  !
पीना पिलाना बेअसर होगा !!

नज़र मिलाओ, संवर जाओगे
'राजा' क्या नज़र का असर होगा

बारीक सुई मैं धागा पिरो रहे हैं हम !!

जाने किस बात पे खफा हो रहे हैं हम !
खुदा ने इतना दिया, फिर भी रो रहे हैं हम !!

बोझिल सी सांस लेकर, बोझिल सा मन लिए !
बारीक सुई मैं धागा पिरो रहे हैं हम !!

कभी तो सुबह होगी , जागेगें नींद से !
ये सोच ख्वाब कितने , यहाँ बो रहे हैं हम !!

ये चाँद आखरी है , ये रात आखरी है !
और तू न आएगा , अब सो रहे हैं हम !!

दुशवारियों का ये , कैसा सिलसिला है !
'राजा' क्यों भीड़ मैं, अब खो रहे हैं हम !!

-'राजा'