एक लम्हा हूँ मैं....

एक लम्हा हूँ मैं,
जो गुजरने को है,
लूट लो तुम मज़ा वरना पछताओगे !
लौटकर फिर कभी मैं नहीं आऊँगा,
मुझको ढूँढोगे और फिर नहीं पाओगे...
एक लम्हा हूँ मैं ....

सोचा था तुमने मुझको संजोकर रखोगे,
जो मुट्ठी में भर लो, मैं वोह शै नहीं हूँ !
जो मुझमें डूबा वोह मेरा हुआ है,
जो मैं आसमाँ हूँ तो मैं ही ज़मीं हूँ !
एक सागर हूँ जो प्यास हरने को है,
प्यास अपनी बुझालो वरना पछताओगे !!
लौटकर फिर कभी मैं नहीं आऊँगा
मुझको ढूँढोगे और फिर नहीं पाओगे
एक लम्हा हूँ मैं....

मैं इक चिराग जला कर बैठा हूँ...

मैं  इक  चिराग  जला  कर  बैठा  हूँ !
दर -ओ -दीवार  सजा  कर  बैठा  हूँ !!

वोह  आयेगा , बस  मैं  ये  जानता  हूँ !
अपनी  नज़रें  बिछा  कर  बैठा  हूँ !!

ख्वाब  है  , तिलिस्म  है  और  तू  है !
मैं  दिल  किससे लगा  कर  बैठा  हूँ !!

अब तो  जो  हो , बस  तुझको पाना  है !
मैं  दिल  से  अब  दुआ  कर  बैठा  हूँ !!

उसकी  नज़रों से मुहोब्बत  बहने लगी !
एक  बुत  को  खुदा  कर  बैठा  हूँ !!

कोई  देख न  ले  मेरी मुहोब्बत 'राजा' !
अपनी  पलकें झुका  कर  बैठा  हूँ !!

उसके  हसीं  लबों  को  चूम  लिया !
'राजा' आज  मैं  क्या  कर  बैठा  हूँ !!

तुम जो छूलो तो पत्थर पे असर हो जाए !

तुम  जो  छूलो  तो  पत्थर  पे  असर  हो  जाए !
तुम  जो  हो  साथ , तो  आसान   सफ़र  हो  जाए !!

तू  नहीं  जानती , तेरे  होने  का  जलवा  क्या  है !
सुबह  से  शाम , शाम  से   सहर  हो  जाए !!

बाद  तेरे  क्या  बताऊँ , हाल  बुरा  होता  है !
जी  तो  ये  चाहे , के  जान  तेरी  नज़र  हो  जाये !!

तेरे  दीदार  का  कुछ  ऐसा  असर  होता  है !
शेरों  को  परवाज़ , लब्जों  के  पर  हो  जाए !!

'राजा'  तेरी  दीवानगी  का  कहाँ  कोई  सानी  है !
तुझपे  भी  मेरी  मुहोबत   का  असर  हो  जाये !!

(*सानी = comparison )

चाँद फिर निकला है कुछ आवारा दोस्तों के साथ..

चाँद फिर निकला है कुछ आवारा दोस्तों के साथ
जाने किस गली मैं आज नज़र मारनी है
कच्ची उम्र का बुखार है ,
सोचते हैं सूरज कोई गेंद है
खेलेंगे सुबह होने तक

सुबह उठता हूँ , करवटें बदलता हूँ
सूरज फिर से फेरी लगाने आ गया
चादरों पे फिर वोही सिलवटें
खुश्क, आँखों के दरीचे हैं
कौन जाने आज क्या लेके आया है दिन

फिर ये सूरज , हर पल की जुगाली करके निकल जाएगा
रह जायेगा फिर वोही सन्नाटा ,
और मैं फिर अपनी नाज़ुक सी तनहाइयों के साथ
चाँद के आवारा दोस्तों से बचाता रहूँगा
भला ये सिलसिला कब तलक यूँही जारी रहेगा
और वोह कोई आखरी दिन होगा
या कोई आखरी रात होगी

मैं भला कब इन परछाइयों से डरने वाला हूँ
अभी जो गुज़र गई उम्र, वोह बीत गयी
बाकी बची है उसे याद रखने लायक बनाना है
बस एक सुबह अपने नाम लिखने की ख्वाईश है
बस एक सुबह अपने नाम लिखना है
बस एक सुबह अपने नाम लिखना है