मैं इक चिराग जला कर बैठा हूँ...

मैं  इक  चिराग  जला  कर  बैठा  हूँ !
दर -ओ -दीवार  सजा  कर  बैठा  हूँ !!

वोह  आयेगा , बस  मैं  ये  जानता  हूँ !
अपनी  नज़रें  बिछा  कर  बैठा  हूँ !!

ख्वाब  है  , तिलिस्म  है  और  तू  है !
मैं  दिल  किससे लगा  कर  बैठा  हूँ !!

अब तो  जो  हो , बस  तुझको पाना  है !
मैं  दिल  से  अब  दुआ  कर  बैठा  हूँ !!

उसकी  नज़रों से मुहोब्बत  बहने लगी !
एक  बुत  को  खुदा  कर  बैठा  हूँ !!

कोई  देख न  ले  मेरी मुहोब्बत 'राजा' !
अपनी  पलकें झुका  कर  बैठा  हूँ !!

उसके  हसीं  लबों  को  चूम  लिया !
'राजा' आज  मैं  क्या  कर  बैठा  हूँ !!

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया

    पढ़ कर दिल खुश हो गया :)

    शुक्रिया

    ReplyDelete
  2. वाह-वाह ये शायरी सीधे दिल में उतरती है, क्या अंदाज़ है, शानदार, खासकर ये शेर -

    "ख्वाब है , तिलिस्म है और तू है !
    मैं दिल किससे लगा कर बैठा हूँ !!

    अब तो जो हो , बस तुझको पाना है !
    मैं दिल से अब दुआ कर बैठा हूँ !!"

    अलफ़ाज़ काफी नहीं हैं इस ग़ज़ल की तारीफ के लिए. ये मेरी खुशकिस्मती है में ये पढ़ रहा हूँ !!

    बहुत बहुत धन्यवाद !!!

    ReplyDelete