चाँद फिर निकला है कुछ आवारा दोस्तों के साथ..

चाँद फिर निकला है कुछ आवारा दोस्तों के साथ
जाने किस गली मैं आज नज़र मारनी है
कच्ची उम्र का बुखार है ,
सोचते हैं सूरज कोई गेंद है
खेलेंगे सुबह होने तक

सुबह उठता हूँ , करवटें बदलता हूँ
सूरज फिर से फेरी लगाने आ गया
चादरों पे फिर वोही सिलवटें
खुश्क, आँखों के दरीचे हैं
कौन जाने आज क्या लेके आया है दिन

फिर ये सूरज , हर पल की जुगाली करके निकल जाएगा
रह जायेगा फिर वोही सन्नाटा ,
और मैं फिर अपनी नाज़ुक सी तनहाइयों के साथ
चाँद के आवारा दोस्तों से बचाता रहूँगा
भला ये सिलसिला कब तलक यूँही जारी रहेगा
और वोह कोई आखरी दिन होगा
या कोई आखरी रात होगी

मैं भला कब इन परछाइयों से डरने वाला हूँ
अभी जो गुज़र गई उम्र, वोह बीत गयी
बाकी बची है उसे याद रखने लायक बनाना है
बस एक सुबह अपने नाम लिखने की ख्वाईश है
बस एक सुबह अपने नाम लिखना है
बस एक सुबह अपने नाम लिखना है