एक लम्हा हूँ मैं,
जो गुजरने को है,
लूट लो तुम मज़ा वरना पछताओगे !
लौटकर फिर कभी मैं नहीं आऊँगा,
मुझको ढूँढोगे और फिर नहीं पाओगे...
एक लम्हा हूँ मैं ....
सोचा था तुमने मुझको संजोकर रखोगे,
जो मुट्ठी में भर लो, मैं वोह शै नहीं हूँ !
जो मुझमें डूबा वोह मेरा हुआ है,
जो मैं आसमाँ हूँ तो मैं ही ज़मीं हूँ !
एक सागर हूँ जो प्यास हरने को है,
प्यास अपनी बुझालो वरना पछताओगे !!
लौटकर फिर कभी मैं नहीं आऊँगा
मुझको ढूँढोगे और फिर नहीं पाओगे
एक लम्हा हूँ मैं....
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