बारीक सुई मैं धागा पिरो रहे हैं हम !!

जाने किस बात पे खफा हो रहे हैं हम !
खुदा ने इतना दिया, फिर भी रो रहे हैं हम !!

बोझिल सी सांस लेकर, बोझिल सा मन लिए !
बारीक सुई मैं धागा पिरो रहे हैं हम !!

कभी तो सुबह होगी , जागेगें नींद से !
ये सोच ख्वाब कितने , यहाँ बो रहे हैं हम !!

ये चाँद आखरी है , ये रात आखरी है !
और तू न आएगा , अब सो रहे हैं हम !!

दुशवारियों का ये , कैसा सिलसिला है !
'राजा' क्यों भीड़ मैं, अब खो रहे हैं हम !!

-'राजा'

3 comments:

  1. Bahut khoob Sir! Pahli line hi itni zabardast likhi ki seedhe dil mein utar gayi.

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  2. शानदार, काफी गहरी बात है और सरल भाषा में,यूँ की मज़ा आ गया

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